Sunday, July 20, 2014

दारू की दुकान ठीक मेरे घर के पीछे है,
सुबह उठता हूँ या रात को सोता हूँ,
दारू को दिन रात बिकता हुहा देखता हूँ,
आराम से बिकती चलती है, ऐसा देखता हूँ।

बेकार में ही लोग मार्केट रिसर्च करते हैं,
और अपना टाइम बेवजह वेस्ट करते हैं,
यह दुनियां का सबसे बेस्ट प्रोडक्ट है,
अपने आप चलता है दूसरों को भी चलाता है।

हर रोज इसके (दारू) कद्रदान आते हैं,
पीते पिलाते और खूब दबा के खाते हैं,
कुछ तो खा पीकर दुकान में ही सो जाते हैं,
कुछ गाली गलौज कर हवालात चले जाते हैं।

तरस बहुत आता है जब गटर का पानी  मिलाते हैं,
इनसे तो बहुत ठीक हैं जो नीट पी जाते हैं,
म्यूनिसपैलिटी की सडक कब्जा के दारू बिकती है,
पुलिस प्रशासन को भी अच्छी रकम मिलती है।

दुआ करता हूँ कि इन दारूबाजों के दिन बहुरें,
सरकार की तरफ से सब्सिडी ग्रांट कुछ मिले,
हराम की मिले तब आराम से कुछ काम चले,
दारू बिके या न बिके, जिंदगी अपनी खूब चले।

No comments:

Post a Comment