कलम से _ _ _ _
22nd May, 2014
Naggar Castle
रात की जलते बुझते
प्रकाश पुजं
ब्यास नदी का किनारा
कल कल करता बहता जल
कर्णप्रिय सतसुरा संगीत
दूर से आती हुई नगाडे की आवाज
कुल्लू घाटी के तीज त्योहार
स्मृति पटल पर
याद रहेंगे बार बार।
मौसम ने ली अंगडाई
बादलों की घडघढाहट
रात भर होती रही
बिजली भी चमचमाती रही
घनघोर बारिश भी होती रही
देवभूमि में
लगा कि कोई
क्रोधाग्नि से सुलग रहा हो
रात गहराती ही जा रही थी
भोर दूर दूर होती जा रही थी।
खौलता दूध बैठ रहा था
अग्निदेव भी शान्त होने लगे थे
पौ धीरे से दस्तक देने लगी थी
हवाओं में संगीत घुलने लगा था
बाहर निकल मनवा खिलने लगा था
जीवन का एक नया रूप दिखने लगा था
मनफूल भीतर ही खिल रहा था
नागर आना भला लग रहा था
कैसल दुबारा बुलाने लगा था।
//surendrapal singh//
07192014
http://1945spsingh.blogspot.in/2014/07/blog-post.html
and
http://spsinghamaur.blogspot.in/
22nd May, 2014
Naggar Castle
रात की जलते बुझते
प्रकाश पुजं
ब्यास नदी का किनारा
कल कल करता बहता जल
कर्णप्रिय सतसुरा संगीत
दूर से आती हुई नगाडे की आवाज
कुल्लू घाटी के तीज त्योहार
स्मृति पटल पर
याद रहेंगे बार बार।
मौसम ने ली अंगडाई
बादलों की घडघढाहट
रात भर होती रही
बिजली भी चमचमाती रही
घनघोर बारिश भी होती रही
देवभूमि में
लगा कि कोई
क्रोधाग्नि से सुलग रहा हो
रात गहराती ही जा रही थी
भोर दूर दूर होती जा रही थी।
खौलता दूध बैठ रहा था
अग्निदेव भी शान्त होने लगे थे
पौ धीरे से दस्तक देने लगी थी
हवाओं में संगीत घुलने लगा था
बाहर निकल मनवा खिलने लगा था
जीवन का एक नया रूप दिखने लगा था
मनफूल भीतर ही खिल रहा था
नागर आना भला लग रहा था
कैसल दुबारा बुलाने लगा था।
//surendrapal singh//
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